1948 में जब मिराण्डा हाउस महाविद्यालय की स्थापना हुई तभी हिन्दी विभाग की नीव भी पड़ी। विभाग की शुरुआत दो अध्यापिकाओं के साथ हुई थी – डॊ. कमला सांधी और श्रीमती शान्ति माथुर। आप दोनों शिक्षिकाओं की शुरुआती पहल ने विभाग के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया। विभाग की वर्तमान सक्रियता में बहुत-सी गतिविधियाँ हैं जिनके बीज तभी पड़े। विभाग की संस्था ‘भारती परिषद’, हिन्दी की नाट्य-समिति, अध्यापिकाओं की अपनी संगोष्ठी… जैसी कोशिशों की शुरुआत तभी हुई थी जो अब भी अपनी पारंपरिक ऊर्जा के साथ नये अध्याय जोड़ती जा रही हैं। बाद के वर्षों में विभाग में नाट्यालोचक डॊ. इंदुजा अवस्थी और डॊ. शैल कुमारी के महत्वपूर्ण नाम जुड़े। विभाग सदस्य के रूप में वरिष्ठ कथाकार मन्नू भंडारी की उपलब्धियाँ वृहत्तर ख़ुशी का कारण बनीं। उनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधियों व कृतियों में शामिल हैं। कवि, कथाकार और आलोचक तीनों रूपों में साहित्य सृजन करने वाली डॊ. अर्चना वर्मा ने विभाग को बहुविध समृद्ध किया। वर्तमान समय में हिन्दी विभाग में अलग-अलग अकादमिक विशेषज्ञता और साहित्य-कला संबंधी रुचियों से संपन्न ग्यारह सदस्य हैं जो अपनी पूर्व-पीढ़ियों से विरासत में प्राप्त जीवन मूल्यों और साहित्यिक मूल्यों का नयी और आने वाली पीढ़ी में सतत् संचार कर रहे हैं। प्रतिवर्ष स्नातक और परास्नातक हुए विद्यार्थी अपने सफल प्रदर्शन से पूरे महाविद्यालय और विभाग की ख़ुशी का हिस्सा हो जाते हैं।
सभी अध्यापक शिक्षण की विभिन्न तकनीक के माध्यम से अध्यापन कार्य करते हैं। संबंधित विषयों पर छात्रों को क्लास रूम में इस तरह पढ़ाया जाता है कि वह सजीव और सहभागी दोनों एक साथ, यानी ‘इन्टरेक्टिव’, हो। विषय को देखते हुए प्रिंटेड सामग्री भी उन्हें दी जाती है। साथ ही, विश्वविद्यालय द्वारा पाठ्यक्रम में अनुसंशित पुस्तकों से भी उन्हें जोड़ने का काम किया जाता है। जहाँ जरूरत होती है पढ़ाने में प्रोजेक्टर की सहायता भी ली जाती है। विषय की मांग के अनुसार ‘पावर प्वाइंट प्रिजेंटेशन’ का भी इस्तेमाल किया जाता है। अध्यापन में यह प्रयास होता है कि विद्यार्थियों में रचनात्मकता का विकास हो और आलोचनात्मक चेतना भी पनपे।
विद्यार्थियों की प्रतिभा और क्षमता का विकास हो इसके लिए अनेक तरह की गतिविधियाँ विभाग में होती रहती हैं। लेखक से मुलाक़ात और संगोष्ठियाँ इसका उदाहरण हैं। वर्षान्त पर होने वाला साहित्योत्सव एक ऐसा मौका होता है कहाँ उत्सव के साथ-साथ यहाँ के विद्यार्थियों को मिराण्डा हाउस के बाहर के विद्यार्थियों के साथ अपनी योग्यता को प्रतियोगिता के जरिये साबित करने का संयोग मिलता है। जो संगोष्ठियाँ होती हैं या जो लेखक से मुलाकात का कार्यक्रम होता है उसमें बातें एकतरफ़ा होकर ही नहीं रखी जातीं बल्कि प्रश्न-सत्र के माध्यम से विद्यार्थियों को भी अपनी टिप्प्णी करने और सवाल रखने का अवसर होता है। अनेक विद्यार्थी इस मौके पर सधी टीप करते हैं और अच्छे सवाल भी पूछते हैं। विभाग की और कॊलेज की पत्रिका के लिए विविध विधाओं में विद्यार्थियों से रचनाएँ-आलेख आमंत्रित किये जाते हैं, इस तरह पढ़ते हुए पाठ्यक्रम से परे भी उनकी लेखन-क्षमता का विकास होता है। कॊलेज में और हिन्दी विभाग में विभिन्न सोसायटीज हैं, विभाग के लोग इसमें शामिल हैं, इनके माध्यम से भी विद्यार्थियों को एक आधार मिलता है कि वे अपनी क्षमता और प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें। भारती परिषद, अनुकृति और हिन्दी वाद-विवाद समिति जैसी संस्थाओं में विद्यार्थियों की भागीदारी काफी उत्साहवर्धक होती है। विभाग के अध्यापकों के साथ विद्यार्थियों को कॊलेज से दूर ‘ट्रिप’ के माध्यम से भी जानने-सीखने के स्वभाव को प्रोत्साहित किया जाता है जहाँ वे साहित्य को अन्तर-अनुशासनिक ढंग, जैसे समाज प्रकृति आदि…, से भी समझ सकने में समर्थ हो पाते हैं। हाल ही में एक ट्रिप नैमिषारण्य़ की, की गयी थी जो विद्यार्थियों को ख़ासी पसंद आयी।
हिंदी विभाग की भूतपूर्व प्राध्यापिका डॉ. सुधा कुमार द्वारा द्वारा हिंदी को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से सुधा प्रेरणा पुरस्कार की शुरुआत की गई थी। ये पुरस्कार हर वर्ष बी.ए.हिंदी (ऑनर्स) की उन छात्राओं को दिया जाता है---जो सेमेस्टर- 1 से सेमेस्टर-3 तथा सेमेस्टर-1 से सेमेस्टर-5 तक ,और बी.ए. (प्रोग्राम) की उन छात्राओं को दिया जाता है जो सेमेस्टर 1 से सेमेस्टर 4 तक तथा एम.ए पूर्वार्द्ध में यूनिवर्सिटी परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त करती हैं। वर्ष 2018 में यह पुरस्कार क्रमशः-- छाया,ललिता,डॉली मीना और काजल को,वर्ष 2019 में अपूर्वा विश्नोई, छाया, मोनिका और शिवि को, 2020 में शगुन वाजपेयी,अपूर्वा विश्नोई,तमन्ना और रोशनी वाजपेयी को, 2021 में अंजलि,अंजलि द्विवेदी,अनुपमा विजय और छाया को प्राप्त हुआ।
भूतपूर्व प्राध्यापिका डॉ. शैल कुमारी ने हिंदी नाट्य समिति अनुकृति में बेहतरीन भागीदारी निभाने वाली छात्राओं को प्रोत्साहन देने के लिए शैल कुमारी अवार्ड की शुरुआत की यह पुरस्कार भी हर वर्ष छात्राओं को उनके योगदान के लिए दिया जाता है। वर्ष 2018 में यह पुरस्कार हिमानी चौहान को, 2019 में आँचल सिंघल को, 2020 में बकुल नेगी को, 2021 में अनामिका सुधाकर को मिला।
हिंदी विभाग के दृष्टि-बाधित छात्राओं को उनकी शैक्षणिक योग्यता और सर्वांगीण प्रदर्शन के लिए प्रति वर्ष BUTI FOUNDATION AWARDS, AMBA DALMIA AWARD, SAVITRI DEVI JOLLY AWARD--- कॉलेज द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
मिरांडा हाउस की हिंदी नाट्य संस्था विगत छह दशकों से विश्वविद्यालय रंगक्षेत्र में अपनी निरंतरता और सक्रियता के लिए जानी-पहचानी जाती है। डॉ. कमला सांघी ने इस वृक्ष का बीज बोया और डॉ. इंदुजा अवस्थी, डॉ. शैल कुमारी और डॉ. अर्चना वर्मा ने इसे सींचा। हिंदी-विभाग की वर्तमान पीढ़ी की प्राध्यापिकाएँ भी निरंतर इसे सक्रिय और ऊर्जावान बनाए रखने की दिशा में प्रयासरत रहती हैं।छात्राएँ अपने भीतर की प्रतिभा को जाने,अपने समय,समाज और परिवेश को समझते हुए अपनी आवाज़ बुलंद करें यही इस मंच का हासिल है। अपने चुने हुए मार्ग पर चलते हुए अनुकृति की छात्राओं ने देशी-विदेशी और लोक-प्रचलित नाटकों को खेला और इन नाटकों को खेलने के क्रम ने उन्हें क्लासिकल, पारंपरिक,पारसी,ग्रीक़ और ब्रेख़्तियन रंगशैली की विशेषताओं को बारीक़ी से समझने का मौका दिया। देश के बेहतरीन निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर उन्हें मिला। साल-दर-साल अनुकृति के इस काँरवा के साथ नई-नई छात्राएँ जुड़ती रहती हैं और ये सफ़र हर बार एक नए पड़ाव पर नए अनुभवों के साथ बढ़ता रहता है। इस बढ़ते हुए काँरवा को कोरोना जैसी महामारी ने चुनौती ज़रूर दी लेकिन ये सफ़र थमा नहीं बल्कि तकनीक को अपना संबल बनाकर कविता के रंगमंच के अनुभव और आस्वाद से गुज़रा।
अनुकृति से छात्राएँ प्रति वर्ष पूर्णकालिक नाटक के साथ-साथ वन-एक्ट प्ले और नुक्कड़ नाटक भी तैयार करती हैं जो अधिकतर स्वलिखित और स्वनिर्देशित होता है। नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति कॉलेज के भीतर-बाहर, मैट्रो स्टेशनों और विद्यालय के परिसरों में होती है। छात्राएँ बदलाव का बिगुल बजाते हुए जेल-परिसर में भी प्रस्तुति देने से नहीं हिचकती। इसके अलावा नुक्कड़ नाटक फेस्टिवल का आयोजन भी करती हैं जिसमें दिल्ली और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र हिस्सा लेते हैं।
इस तरह यह समिति अपने आयोजनों से छात्राओं में नेतृत्व-क्षमता और समय-प्रबंधन का कौशल भी विकसित करने में अहम् भूमिका निभाती है।
मिराण्डा हाउस का हिन्दी विभाग ही वह विभाग है जिस पर सबसे पहले हिन्दी सिनेमा की निगाह गयी। विभाग का गौरव रहीं कथाकार मन्नू भंडारी की कृति ‘यही सच है’ पर 1974 में बासु चटर्जी द्वारा निर्देशित, बहुचर्चित फिल्म ‘रजनीगंधा’ बनी। मन्नू भंडारी के उपन्यास ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ हिन्दी कथा साहित्य में अहम स्थान रखते हैं। ‘महाभोज’ विभिन्न प्रशासनिक परीक्षाओं के निर्धारित पाठ्यक्रम का हिस्सा बनता आया है। हिन्दी अकादमिक विमर्श में महत्वपूर्ण ‘अस्मिता विमर्श का स्त्री स्वर’ लिखने वाली आलोचक अर्चना वर्मा ‘हंस’, ‘कथादेश’ जैसी पत्रिकाओं के संपादन कार्य में भी संलग्न रही हैं। डॊ. रमा यादव आई.सी.सी.आर की सांस्कृतिक आदान-प्रदान की योजना के तहत हिन्दी चेयर पर हंगरी में अगस्त 2013 से अगस्त 2015 तक रहीं। सुश्री अपराजिता शर्मा ने सोशल मीडिया में हिन्दी चैट स्टीकर्स ‘हिमोज़ी’ का आविष्कार किया है। इनके इस काम की महत्ता को देखते हुए सुविख्यात पत्रिका ‘फेमिना’ ने विगत वर्ष की भारत की 101 सबसे सशक्त महिलाओं की सूची में इन्हें शामिल किया है।
प्रतिवर्ष बहुत से विद्यार्थी उत्तीर्ण होकर मिराण्डा हाउस – हिन्दी विभाग के ‘एल्युमना’ समूह में शामिल हो जाते हैं। ये विद्यार्थी अपनी सफलता को आगे भी जारी रखते हैं। विभाग से उत्तीर्ण हो कर निकले विद्यार्थी अपनी लगन-निष्ठा से विभिन्न संस्थाओं में कार्य करते हुए अपना सकारात्मक योगदान दे रहे हैं। ऐसे विद्यार्थियों की संख्या बहुत अधिक है। कुछ ही के नामोल्लेख यहाँ हो पा रहे हैं।